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क्या आप अपने बच्चे को मानसिक तौर पर सक्षम बनाना चाहते है? जानिए बच्चों का मानसिक विकास के Important टिप्स

 

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क्या आप अपने बच्चे को मानसिक तौर पर सक्षम बनाना चाहते है?

बच्चों का मानसिक विकास
बच्चों का मानसिक विकास

 

आज के इस compitition के जमाने में हर parents की ख्वाइश होती है कि दुनिया की इस रेस में कहीं उनका बच्चा पिछे ना रहें। इस लिए हर माता पिता को यह जरूरी है कि बचपन से ही वह अपने बच्चों का मानसिक विकास , स्वास्थ और शारीरिक विकास को गंभीरता से लें और शिशु के सर्वांगीण विकास में कोई कसर बाकी ना छोड़े।

इस आर्टिकल में हम जानेंगे बच्चों के मानसिक विकास और बौद्धिकता को कैसे बढ़ा सकते है? इस के लिए शिशु के जन्म से लेकर उसके बाल्यावस्था तक हमें किन बातों का खयाल रखना चाहिए? बच्चों का मानसिक विकास कैसे होता है? इस के लिए हमें क्या उपाय करने चाहिए? बच्चों के भोजन में हमें किस उम्र में किस तरह से बदलाव करने है? क्या किसी तरह के गैजेट्स, मोबाइल जैसी चीजें बच्चों के मानसिक विकास में फायदा पोहचा सकती है या इस से कोई नुक़सान होता है? इन सभी सभी बातों पर गौर करेंगे।

बाल्यावस्था में हम बच्चों का बौद्धिक स्तर कैसे बढ़ा सकते हैं? कैसे बच्चों में नई बातों की जिज्ञासा को बढ़ा सकते है? क्या हम हमारे बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए पर्याप्त समय दे पाएंगे? ऐसे कई सारे सवाल parents के मन में आते हैं। और parents कई बार ऐसी दुविधा में होते है। जो समझ नहीं पाते कि अपने बच्चों का विकास वह किस तरह से कर सकते है?

उन सभी parents के लिए हमारा यह आर्टिकल काफ़ी महत्वपूर्ण है। जो बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए काफ़ी confuse हो जाते है। और बच्चों के भविष्य के प्रती चिंता करते हैं।

गर्भावस्था से ही शुरू होता है बच्चों का मानसिक विकास

मां की गर्भावस्था से ही शिशु मानसिक तौर पर अपनी समझ को उजागर करता है। जैसे आप ने कई बार सुना होगा अक्सर घर के बड़े या बुज़ुर्ग सलाह देते है कि गर्भावस्था के दौरान अच्छे विचार और अच्छी बातों को बोलना और सुनना चाहिए। वीर पुरुषों की कथाओं को वाचन,चिंतन, मनन करना चाहिए। आज मार्केट में कई ऐसे वीडियो आडियो मौजूद है जो गर्भ संस्कार की शिक्षा देते है। मानना यह है कि उस के सुनने अथवा ग्रहण करने से बच्चों पर अच्छे संस्कार होते है। शिशु का मानसिक और बौद्धिक स्तर पर विकास होने में मदद मिलती है।

और यही बात science भी prove करता है कि गर्भावस्था के 7 वें से 8 वें सप्ताह से में भ्रूण में ग्रहण करने की क्षमता का विकास होना शुरू होता है। उसी उपरांत गर्भावस्था के तीसरे महीने में शिशु में nervous system का भी विकास शुरू हो जाता है जिस में तेजी से neurones जुड़ने लगते है। और उस है बाद जैसे जैसे गर्भावस्था आगे बढ़ती है उसी के साथ शिशु का शारीरिक और मानसिक विकास शुरू होता है। इसलिए आप की बातों को गर्भ में शिशु सुनता भी है और उस पर गर्भ में शिशु किक कर react भी करता है। यही से बच्चों का मानसिक विकास शुरू होता है।

गर्भावस्था में रखें कुछ बातों का खयाल।

हर मां को लगता है उस का शिशु दिमागी तौर पर तेज हो और शारीरिक सुद्रूढ़ता से पूर्ण हो। इस के लिए एक मां को भी गर्भावस्था के दौरान कुछ बातों खयाल रखना जरूरी है। जैसे गर्भावस्था के दौरान खानपान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है। खुद में positivity को develope करना होता है। विचारों में क्रियाशिलता लाने की जरूरत होती है।

गर्भावस्था के दौरान खानपान

गर्भावस्था के 3 महीने से ही गर्भवती महिला को Omega 3 faccy acid और foric acid के साथ irons, minerals, विटामिन के supliment का सेवन शुरू कर देना चाहिए। इस के साथ साथ आप अपने आहार में रोजाना 2 मौसमी फलों और dry foods का सेवन करना चाहिए। साथ ही गर्भावस्था के दौरान green vegetables, फलों का ज्यूस, मछली, अंडा, दुग्ध जन्य पदार्थो का भी आपको सेवन करना चाहिए। इस से आप के शिशु का शारीरिक विकास के साथ मानसिक विकास होने में भी काफ़ी मदद मिलती है।

गर्भावस्था के दौरान खुद को रखें positive

गर्भावस्था में अच्छे विचारों के साथ खुश रहना। एक positive सोच से मन का उत्साह बढ़ाना काफी जरूरी होता है। जो गर्भ में पल रहे शिशु के मानसिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। अपनी सोच का दायरा बढ़ाकर अच्छे विचारों को ग्रहण करने से होनेवाले शिशु में सकारात्मकता के भावों को अंकुरित होते है। इस दौरान आप अच्छी किताबें पढ़े, अच्छा संगीत सुनें, कुछ प्रेरक और सकारात्मक विचारों को ग्रहण करें। उसका चिंतन, मनन करें। जो आप के होनेवाले शिशु को काफी फायदा पहुंचा सकता है।

जन्म के बाद बच्चों का मानसिक विकास

शिशु के जन्म के बाद कई सारे parents अपने शिशु के भविष्य के बारे में सोचने लगते है। और यह एक तरह से ठीक भी है। लेकिन parents को अपने बच्चों का मानसिक विकास, उसकी बौद्धिक क्षमता को विकसित करने हेतु प्रयास, उसका शारीरिक स्वास्थ एवं उसको हर चुनौती के लिए काबिल बनाने की आवश्यकताओं पर ध्यान देने की जरूरत होती है। जिसे आगे चलकर उनके बच्चों में खुद के भविष्य को संवारने की काबिलियत प्राप्त हो।

जब एक शिशु दुनिया में क़दम रखता है तब वह दुनिया की सारी चीजों से अनभिज्ञ रहता है और उस की सोच का दायरा भी सीमित रहता है। जैसे जैसे शिशु बढ़ता है वैसे उसका सोच का दायरा बढ़ाना शुरू होता है। बच्चे की आकलन शक्ति, उसकी जिज्ञासा, उसकी बौद्धिक क्षमताओं का विस्तार शुरू हो जाता है। इस वक्त हमें जरूरी बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता होती है। जैसे उसकी आकलन क्षमता को बढ़ाना, उसकी जिज्ञासा का सुचारू रूप से समाधान करना, बच्चे के खानपान पर विशेष ध्यान रखना, उसकी परखने की दृष्टि को विकसित करना आदि।

0 से 1 वर्ष में बच्चों का मानसिक विकास।

एक नवजात शिशु को गंध, दृष्टि और शब्द का ज्ञान नहीं होता। इसलिए हम 0 से 1वर्ष में बच्चों के मानसिक विकास के लिए हम क्या कर सकते है? यकीनन यह सवाल आप के मन में आता होगा। और यह एक अच्छा सवाल है। लेकिन आप को यह भी पता है कि शिशु कमंसिक विकास उस के गर्भ में रहते ही शुरू हो जाता है तो 0 से 1वर्ष में भी उसका मानसिक विकास तेजी से होता है जी के लिए हमें कुछ बातों को जानना जरूरी है।

शिशु की मालिश

जिस तरह मालिश शिशु के शारीरिक सद्रूढ़ता के लिए, शारीरिक विकास के लिए जरूरी है। उसी तरह मालिश से बच्चों का विकास, उसकी बौद्धिक क्षमताओं का विस्तार भी होता है। लेकिन मालिश करते वक्त यदि हम कुछ बातों का ध्यान रखें तो शिशु के मानसिक विकास में काफी वृद्धि हो सकती है।

शिशु की मालिश मां को ही करनी चाहिए। यदि किसी कारण मां अपने शिशु की मालिश नहीं कर सकती तो घर के किसी सदस्य जैसे दादी या नानी इन्होंने शिशु की मालिश करनी चाहिए। इस का एक महत्वपूर्ण कारण यह है कि जब हम अपने शिशु की खुद मालिश करते है तो उस वक्त हमारी सोच शिशु के प्रती positive होती है। और हमारी positive energy शिशु में transfer होती है जो शिशु पर जबरदस्त तरीके से effect करती है।

एक शिशु के लिए मां का दूध और मां का स्पर्श सर्वेपरी होता है। उस स्पर्श में बच्चे को सुरक्षितता, वात्सल्य, प्रेम और अपनेपन का एहसास होता है। कोई भी मां अपने बच्चे के प्रती समर्पित होती है। एक मां positive तरीक़े से शिशु के अच्छे स्वास्थ, बौद्धिकता एवं मानसिक विकास की कामना करती है। इसलिए मां ही अपने शिशु की मालिश करें तो बच्चे का शारीरिक और मानसिक विकास काफी अच्छे से हो सकता है।

शिशु का आहार

बच्चों का मानसिक विकास के लिए जरूरी है कि शिशु को भरपूर पोषक तत्वों युक्त आहार मिलें जो उनके सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है। 0 से 6 महीने तक शिशु अपने मां के दूध पर ही निर्भर रहता है। इस लिए जरूरी है की मां अपने आहार में जरूरी पोषक तत्वों को add करें। अच्छा पोषणयुक्त भोजन करें जिस से उस के शिशु को पर्याप्त मात्रा में सभी जरूरी पोषक तत्त्व मिल सकें।

6 महीने के उपरांत जब बच्चा solid खाना शुरू करता है। तब हम बच्चों को पोषक अगर से सकते है। शुरवात के दिनों में हम सेरेलेक देते सकते है जिस में प्रोटीन, विटामिन, minerals के साथ सारे पोषक तत्त्व मौजूद होते है। उस के बाद हम बच्चे के आहार में vegetables, fruit, dry foods के साथ eggs, fish भी adds कर सकते है। जिसे बच्चों का मानसिक विकास बड़ी तेजी से होने मै काफी मदद मिलती है।

शिशु के साथ करें बातें।

गर्भ में ही शिशु के ग्रहण शक्ति का विकास होना शुरू हो जाता है। ध्वनि कंपनों से उसकी आकलन शक्ति में काफी इजाफा होता है। शिशु हमारे द्वारा बोले गए शब्दों को बड़े गौर से सुनता है। और हमारे lips की हरकतों को देखता है। और कभी हंस के react भी होता है। इस लिए हमें चाहिए कि बच्चों के साथ ढेर सारी बातें करें। बच्चे rythemic words को अच्छे से सुनते है। इसलिए बच्चों को लोरी सुनाए। इससे बच्चों का मानसिक विकास बड़ी तेजी से होता है।

1 से 3 वर्ष में बच्चों का मानसिक विकास।

1 वर्ष की आयु में बच्चा अच्छे से solid foods लेना शुरू कर देता है। और उस की आकलन शक्ति भी काफी विकसित हो जाती है। जिस मे वह अपने मातापिता को और पारिवारिक सदस्यों को पहचान सकता है। शब्दों को गौर से सुनने एवं शब्दों को पहचान ने कि क्षमता बच्चों मै विकसित हो जाती है। और इस आयु में उस की जिज्ञासा काफी बढ़ जाती है। इस आयु में बच्चों का मानसिक विकास next level पर आता है। इस उम्र में भी हमें बच्चों के आहार पर तो ध्यान रखना ही है लेकिन उस से अलग हमें कुछ और बातों का ध्यान रखने की आवश्यकता होती हैं।

बोलने की शक्ति

इस आयु में बच्चे शब्दों को सुनकर उनका उच्चारण करने की कोशिश करते है। हमें उनके इस बोलने की शक्ति को बढ़ावा दिन की जरूरत होती है जिस से वह शब्दों को अच्छी तरह से समझ पाए। जैसे बच्चा यदि किसी शब्द को हमारे मुंह से सुनता है और lips की हरकते देखता है तो हमें बच्चों के सामने शब्द को बार बार दोहराना चाहिए और धीरे धीरे बोलना चाहिए जिस से बच्चा हमारे lips की हरकतों को समझ कर शब्द का उच्चारण स्वयं कर सकें। जिस से बच्चों का मानसिक विकास भी तेजी से होता है और बच्चे की बोलने की क्षमता भी बढ़ती है।

बच्चे की जिज्ञासा की पूर्ति करना।

1 से 3 वर्ष की आयु में बच्चों में काफी जिज्ञासा उत्पन्न होती है। वह कई तरह की चीज़ो को समझना चाहते है। यदि वह चीजों को अच्छी तरह ना समझ पाए तो बच्चे चिड़चिड़ा पन, ज्यादा रोना या अपने भावुकता को प्रदर्शित करने की कोशिश करते है। यदि इस उम्र में हम बच्चों की मानसिकता को समझकर उनकी जिज्ञासा को विस्तार नहीं देंगे या उनको सही तरीके से चीजों के बारे में नहीं समझाएंगे तो बच्चे उनकी आकलन शक्ति को खो बैठेंगे। इसलिए हमें बच्चे किसी चीज की तरफ इशारा कर रहे है तो वह चीज क्या है उस बोल कर समझना चाहिए।

बच्चों को डर ना दिखाएं।

अगर बच्चे किसी चीज से या किसी बात से डर रहे है तो हमें उन बातों से बच्चे के डर को खत्म करना चाहिए। और हमें यह खयाल रखना चाहिए कि हम किसी बात का बच्चे को डर ना दिखाएं। यह हमारी सब से बड़ी भूल हो सकती है। कभी भी किसी बात का डर बच्चों को ना दिखाए। बच्चों को किसी चीज या बातों से डराने से बच्चों में negativity क्रियान्वित हो सकती है। और नकारात्मक भाव बच्चों का मानसिक विकास में बढ़ाए उत्पन्न कर सकता है।

3 से 5 वर्ष में बच्चों का मानसिक विकास।

3 वर्ष तक बच्चा अच्छे से बोल सकता है। चीज़ोको समझ सकता है। इस उम्र में बच्चे की activity काफी बढ़ जाती है। बच्चे की भूख बढ़ जाती है। इसलिए हम बच्चों के आहार में प्रोटीन, विटामिन, कैल्शियम, आयरन, मिनरल्स को शामिल करना ही है। बच्चे को पूर्ण nutrient मिल सके इसका ध्यान हमें रखना है।

इस आयु में बच्चे जिज्ञासा वश जय उल्टी सीधी हरकतें करते है। जिस पर हम बच्चों को डांटते या कभी मारते भी है। लेकिन डांटना या मारना यह समस्या का समाधान तो नहीं हो सकता। क्यों की सही और ग़लत इन बातों से बच्चा अनभिज्ञ होता है। इसलिए हमें कुछ बातों का खयाल रखना चाहिए।

बच्चों को प्यार से समझाए।

3 से 5 वर्ष की आयु में बच्चे काफी एक्टिव होते है। उस आयु में चीज़ोको जानने कि जिज्ञासा भी काफी बढ़ जाती है। और चीज़ो को समझने की जीन्यासा ही इस उम्र में बच्चों की खुशी होती है। जब बच्चा हमारी activity देखता है तो यह समझ नहीं पता कि यह क्या है? क्यों है? इस से क्या होता है? और उस समझने की चाह में बच्चे उल्टी सीधी हरकते करते है जिस से parents परेशान भी होते है। और बच्चों को डांटते और मारते भी है।

लेकिन इस से बच्चों पर गलत असर होने की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए हमें बच्चों को प्यार से समझाने कि जरूरत होती है। जिस से बच्चों का ज्ञान भी बढ़ता है। चीज़ों को सही ढंग से समझने के बाद बच्चों का उस चीज के प्रती रवैया बदलता है। किसी चीज को समझने की उत्कंठा को बच्चे सही तरह से व्यक्त करने के आदि हो जाते है। जिस मे उन्हे यह पता होता है कि उनको parents सही तरह से समझा सकते है। जिस कारण अपने parents की प्रती बच्चों के लगाव में बढ़ोतरी होती है।

बच्चों को रिश्तों कि अहमियत समझाएं।

बच्चों को रिश्तों की अहमियत समझाने की जरूरत इसी उम्र में होती है क्यों कि इस उम्र में बच्चे रिश्तों के प्रति अपने बदलावों के दौर में होते है। बच्चों को बड़ों के प्रति सम्मान के लिए प्रेरित करें। जिसे बच्चों के स्वभाव में एक लचीलापन आ सकता है। जो भविष्य में सामाजिक तौर पर उस के रवैये को परिभाषित करती है।

बच्चों को खुद को सक्षम होने दें।

बच्चों का मानसिक विकास का यह एक जरूरी पैलु है। क्यों की उस उम्र से ही अगर आप बच्चों को सक्षम होने की शिक्षा देते है तो भविष्य में किसी भी तरह के संकटों में खुद को बेहतर साबित कर सकता है। बच्चे यदि खेलते वक्त गिर जाते है तो उन्हें तुरंत उठाने न जाएं। उन्हे खुद को उठने दे। (अगर चोट लगी हो या कोई गंभीर बात हो तो आप तुरंत जाए।) खुद के छोटे छोटे काम बच्चो को खुद कर ने के लिए प्रेरित करें।

बच्चों को मोबाइल या किसी तरह के गैजेट से दूर रखें।

आज कल के parents समझते है कि मोबाइल या किसी तरह के गैजेट बच्चों को दिमागी तौर पर सक्षम बनाने के लिए मदद कर सकते है। Smart phone से उनके बच्चे भी smart हो जाएंगे तो यह पूरी तरह से गलत धारणा है। स्मार्टफोन, या किसी तरह के गैजेट से बच्चों का मानसिक विकास कुंठित हो सकता है। या उस के आदि होकर बच्चे depression का शिकार होने की ज्यादा संभावनाएं होती है। और mobile के radiation से बच्चों के दिमाग पर काफी गहरा असर हो सकता है। बच्चों में किसी तरह की मानसिक विकृति भी नजर आ सकती है।

बच्चों की करें किताबों से दोस्ती।

बाल्यावस्था सए किशोरावस्था बच्चों का मानसिक विकास का महत्वपूर्ण पड़ाव होता है। इसलिए हमें बाल्यावस्था से ही अपने बच्चों का intrest किताबों मे बढ़ाना चाहिए। कथाएं , कहानियां बच्चों की कल्पनाओं को आकार देती है जो बच्चों की आकलन शक्ति को मजबूत करती है।

बच्चों का मानसिक विकास यदि सही तौर तरीकों से किया जाए तो यकीनन आप अपने बच्चे को भविष्य में एक अच्छा और सफल इंसान के रूप में देख सकते हो।

 

बच्चों का मानसिकविकास
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